October 15, 2024

सूर्य नमस्कार कैसे करे | Surya Namaskar kaise kare

सूर्य नमस्कार कैसे करे ?

सूर्य नमस्कार को सभी योगासनों में श्रेष्ठतम योगासन माना गया है , एक योगासन से पूर्ण शरीर का योग हो जाता है इसलिए इसे सर्वांग व्यायाम कहा गया है, इसका नियमित रूप से अभ्यास करने से व्यक्ति को सम्पूर्ण योग व्यायाम का लाभ मिल जाता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति का शरीर निरोग और स्वस्थ होकर तेजस्वी हो जाता है। ‘सूर्य नमस्कार’ स्त्री, पुरुष, बाल, युवा तथा वृद्धों के लिए भी उपयोगी बताया गया है। वैसे हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि ” योग भगाये रोग ” मतलब – जहाँ नियमित रूप से योग का अभ्यास किया जाता है वहां बीमारी आ नहीं सकती , शास्त्रों के एक श्लोक में साफ़ लिखा गया है
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते ॥
(जो लोग प्रतिदिन सूर्य नमस्कार ( Surya Namaskar ) करते हैं, उनकी आयु, प्रज्ञा, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है ।

सूर्य नमस्कार कब करे ?

जैसा की नाम से ही विदित है ” सूर्य नमस्कार ( Surya Namaskar ) “ मतलब सूर्योदय के समय को सूर्य नमस्कार के लिए सबसे उत्तम समय माना गया है, सुबह सुबह अपनी दैनिक क्रियायों को निबटाकर खाली पेट ही इसे करना चाहिए , शांत वातावरण में शांत मन से खुले मैदान / स्थान पर ये योगासन किया जाए तो ज्यादा फायदेमंद रहेगा, अगर जगह एकदम साफ़ हो तो नंगे पांव करना चाहिए ताकि हमारा शरीर पृथ्वी से सीधे टच में रहे, उसका अहसास आपको एक अलग ही एनर्जी का अनुभव कराएगा.

सूर्य नमस्कार के साथ हर आसन के मंत्र ( सूर्य के ही दूसरे नाम )

सूर्य नमस्कार के साथ 12 मंत्र भी बोले जाते थे , प्रत्येक आसन करने साथ – साथ उसके मंत्र का उच्चारण करते रहना यानि प्रत्येक मंत्र में सूर्य का भिन्न नाम लिया जाता है। हर मंत्र का एक ही सरल अर्थ है- सूर्य को (मेरा) नमस्कार है। सूर्य नमस्कार के बारह स्थितियों या चरणों में इन बारह मंत्रों का उचारण जाता है। सबसे पहले सूर्य के लिए प्रार्थना और सबसे अंत में नमस्कार पूर्वक इसका महत्व बताता हुआ एक श्लोक बोलते हैं –

ॐ ध्येयः सदा सवितृ-मण्डल-मध्यवर्ती, नारायण: सरसिजासन-सन्निविष्टः।
केयूरवान् मकरकुण्डलवान् किरीटी, हारी हिरण्मयवपुर्धृतशंखचक्रः ॥

सूर्य नमस्कार करने का सही तरीका

सूर्य नमस्कार का अभ्यास बारह स्थितियों में किया जाता है, जो निम्नलिखित है-

(1) दोनों हाथों को जोड़कर सीधे खड़े हों। नेत्र बंद करें। ध्यान ‘आज्ञा चक्र’ पर केंद्रित करके ‘सूर्य’ का आह्वान ‘ॐ मित्राय नमः’ मंत्र के द्वारा करें।

प्रणामासन – ॐ मित्राय नमः

(2) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

हस्त उत्तानासन – ॐ रवये नमः।

(3) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।

उत्तानासन – ॐ सूर्याय नमः।

(4) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

अश्व संचालनासन – ॐ भानवे नमः।

(5) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

चतुरंग दंडासन – ॐ खगाय नमः।

(6) श्वास भरते हुए शरीर को पृथ्वी के समानांतर, सीधा साष्टांग दण्डवत करें और पहले घुटने, छाती और माथा पृथ्वी पर लगा दें। नितम्बों को थोड़ा ऊपर उठा दें। श्वास छोड़ दें। ध्यान को ‘अनाहत चक्र’ पर टिका दें। श्वास की गति सामान्य करें।

अष्टांग नमस्कार – ॐ पूष्णे नमः।

(7) इस स्थिति में धीरे-धीरे श्वास को भरते हुए छाती को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधे कर दें। गर्दन को पीछे की ओर ले जाएं। घुटने पृथ्वी का स्पर्श करते हुए तथा पैरों के पंजे खड़े रहें। मूलाधार को खींचकर वहीं ध्यान को टिका दें।

भुजंगासन – ॐ हिरण्यगर्भाय नमः।

(8) श्वास को धीरे-धीरे बाहर निष्कासित करते हुए दाएं पैर को भी पीछे ले जाएं। दोनों पैरों की एड़ियां परस्पर मिली हुई हों। पीछे की ओर शरीर को खिंचाव दें और एड़ियों को पृथ्वी पर मिलाने का प्रयास करें। नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाएं। गर्दन को नीचे झुकाकर ठोड़ी को कण्ठकूप में लगाएं। ध्यान ‘सहस्रार चक्र’ पर केन्द्रित करने का अभ्यास करें।

अधोमुक्त श्वानासन – ॐ मरीचये नमः

(9) इसी स्थिति में श्वास को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं। छाती को खींचकर आगे की ओर तानें। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाएं। टांग तनी हुई सीधी पीछे की ओर खिंचाव और पैर का पंजा खड़ा हुआ। इस स्थिति में कुछ समय रुकें। ध्यान को ‘स्वाधिष्ठान’ अथवा ‘विशुद्धि चक्र’ पर ले जाएँ। मुखाकृति सामान्य रखें।

अश्व संचालनासन – ॐ आदित्याय नमः।

(10) तीसरी स्थिति में श्वास को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकाएं। हाथ गर्दन के साथ, कानों से सटे हुए नीचे जाकर पैरों के दाएं-बाएं पृथ्वी का स्पर्श करें। घुटने सीधे रहें। माथा घुटनों का स्पर्श करता हुआ ध्यान नाभि के पीछे ‘मणिपूरक चक्र’ पर केन्द्रित करते हुए कुछ क्षण इसी स्थिति में रुकें। कमर एवं रीढ़ के दोष वाले साधक न करें।


उत्तानासन – ॐ सवित्रे नमः।

(11) श्वास भरते हुए दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए ऊपर की ओर तानें तथा भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाएं। ध्यान को गर्दन के पीछे ‘विशुद्धि चक्र’ पर केन्द्रित करें।

हस्त उत्तानासन – ॐ अर्काय नमः।

12) यह स्थिति – पहली स्थिति की भाँति रहेगी।


प्रणामासन – ॐ भास्कराय नमः।

सूर्य नमस्कार के फायदे

  • सभी महत्त्वपूर्ण अवयवोंमें रक्तसंचार बढता है।
  • सूर्य नमस्का‍र से विटामिन-डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
  • आँखों की रोशनी बढती है।
  • शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।
  • सूर्य नमस्कार का असर दिमाग पर पडता है और दिमाग ठंडा रहता है।
  • पेटके पासकी वसा (चरबी) घटकर भार मात्रा (वजन) कम होती हैजिससे मोटे लोगों के वजन को कम करने में यह बहुत ही मददगार होता है।
  • क्रोध पर काबू रखने में मददगार होता है।
  • कमर लचीली होती है और रीढ की हडडी मजबूत होती है।
  • त्वचा रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
  • हृदय व फेफडोंकी कार्यक्षमता बढती है।
  • बाहें व कमरके स्नायु बलवान हो जाते हैं ।
  • कशेरुक व कमर लचीली बनती है।
  • पचनक्रियामें सुधार होता है।
  • मनकी एकाग्रता बढती है।
  • यह शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है।
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